जब भी नजर पड़ती है
मुस्कुराते फूलों पर
मुस्कुराते फूलों पर
तो लगता है जैसे
तुम
हंसी हो – छुपा कर खुद को –मुझ से
इन फूलों
के बीच
और तुम्हारे चेहरे की रंगत
उभर
आती है फूलों की शक्ल में !
जब भी रातों को
जब भी रातों को
नजर पड़ती है आसमान में
तो तुम चाँद बन – मेरी पहुँच से दूर
तो तुम चाँद बन – मेरी पहुँच से दूर
बहूत दूर –मुस्कुराती
हुई कहती हो
“
मुझे छु लो !”
और जब भी हताश मैं
बैठ जाता हूँ जमीं पर
बैठ जाता हूँ जमीं पर
तो तुम जुगनू बन
चली आती
हो मेरे पास
और
आँखें झपकती
नन्ही
अबोध बच्ची सी मुझे निहारती हो अपलक ....!
और जब देखता हूँ
खुद पे गिरी शबनम को
तो लगता है तुम्हारी भीगी हुई जुल्फों से
गिरी हों चंद बूंदें
और उसका गीलापन
मेरे जिस्म से लिपट जाता है
तुम्हारी तरह!!!!