मस्त मुसाफिर
इब्न-ए-बतूता,
सफ़र-ए-शहंशाह की गाथा |
आज सुनाते हैं
हम सबको ,
सुनो-सुनो भगिनी – भ्राता ||
सदी तेरहवी अरब
देश से ,
चला मुसाफिर एक
अंजान |
घूम-घूम
कर जिसने
पाई,
देश-विदेशों में
पहचान |
मक्का की गलियों से निकला ,
इब्न-ए-बतूता
जिसका नाम ||
पार किये
कई उदधि – मरुस्थल ,
घुमा जिसने
सकल जहान |
अरब-इराक़-काहिरा
घूमा ,
चीन और भारत – ईरान |
अँधेरी गलियों
को छाना ,
जिससे थी दुनिया अनजान |
महा घुमक्कड़ की
गाथा का ,
आज यहाँ मिल
करें बखान |
नगरी-नगरी फिरने वाला ,
ये आजाद –अजब इंसान |