कलेंडर सी जिन्दगी
बदल रही है हर रोज
दिन तारीख
महीनों की शक्ल में
और धीरे- धीरे
घट रहा है फासला
दुनियावी सफ़र का
हाँ
कलेंडर पर लिखे
काले हर्फो सी जिन्दगी
हर रोज
नई शक्ल में
आकार बदलती
खुद में उलझी सी
तय कर रही है रास्ता
धीरे-धीरे!!
और गुजरते वक़्त की यादें
मौसम सी
करवट लेती हैं
हर शख्स के मन में
जो भर देती है
नए उत्साह से
नव उमंग से
हमारी धमनियों को
और हम
भूल जाते हैं
कम होते फासले
उस कलेंडर की तरह
जो दिवार पर टंगा
अब भी फडफडा रहा है
शान से!!!