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बुधवार, 10 जून 2020

इब्न-ए-बतूता

मस्त मुसाफिर इब्न-ए-बतूता,

सफ़र-ए-शहंशाह  की गाथा |

आज सुनाते हैं हम सबको ,

सुनो-सुनो  भगिनी – भ्राता ||

सदी तेरहवी अरब देश से ,

चला मुसाफिर एक अंजान |

घूम-घूम कर  जिसने  पाई,

देश-विदेशों  में  पहचान |

मक्का की  गलियों से निकला ,

इब्न-ए-बतूता जिसका नाम ||

पार  किये  कई  उदधि – मरुस्थल ,

घुमा  जिसने  सकल जहान |

अरब-इराक़-काहिरा घूमा ,

चीन और  भारत – ईरान |

अँधेरी गलियों को छाना ,

जिससे थी  दुनिया अनजान |

महा घुमक्कड़ की गाथा का ,

आज यहाँ मिल करें बखान |

नगरी-नगरी  फिरने  वाला ,

ये आजाद –अजब इंसान |

संक्रमण के विरूद्ध।

एक मोर्चा
व्यस्त है
बचाने को ज़िंदगी
लगा है रात दिन 
सेवा - सुश्रुषा में
पहन कर हौसले के कवच - कुंडल
लड़ रहा है 
दिन - रात
अनजाने शत्रु से।
अपनों से दूर, अपनों के बीच।
एक मोर्चा
संभाले तीर कमान
दे रहा है पहरा
सड़कों में, गलियों में
भूखा - प्यासा
और खा रहा है 
लाठी, पत्थर
बज्र से शरीर पर।
पत्थर के फूल
बरसते हैं आसमानों से
एक अनजान भय
दुबका है
बुलेप्रूफ जाकेट की जेबों में।
हेल्मेट पर उतर आता है खून
अपनों के प्रहारों से।
और अघोषित युद्ध
चला जा रहा है
हर घर की देहरी पर।
लाशों का भयावह खेल
बस गया है
हर बच्चे के अंतस में
और अनजान शत्रु
रक्तबीज सा
संख्य से असंख्य
सीम से असीम
बढ़ रहा है
नाउम्मीदी के अंधेरे में।
हर तरफ
खौफ है
दूसरा सूरज ना देखने का
हर रात
ले कर आती है 
एक नया संक्रमण।
पर
आशा की किरण
फिर भी जाने -अनजाने
जगाती है उम्मीद
अंधेरे के छटने की।
हर मोर्चे पर बैठा आदमी
दे रहा है हौसला
नए युग का
और कर रहा है होम
अपने आज का
कोरॉना के खिलाफ़।
संक्रमण के विरूद्ध।।