उल्लू के गुन गाइए , उल्लू जग की शान!
जो घर उल्लू बसत हैं, सो घर महल समान!
सो घर महल समान, हैं उल्लू दाता प्यारे!
इनके दरसन करे तो तेरे, वारे-न्यारे!
देखा जिसने सुबह-सुबह रे उल्लू टेढ़ा!
समझ अरे नादान, हो गया गर्क रे बेडा!
उल्लू जरा बनाय के जो शीधा कर जाये!
सो नर बनत महान, मरे तो सुराग को जाये!
कहे मुसाफिर उल्लू की है महिमा भारी
उल्लू 'उल्लू' ही नहीं, है दुनिया 'उल्लू' सारी!
कुछ इस तरह उसने मेरी
आँखों से गम को छुपा लिया,
मुस्कुराये, और उसी को
नकाब अपना बना लिया!!!
पृथ्वीपाल रावत "अकेला मुसाफिर"
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
-
कागज़ के टुकड़ों पर कलम की नोक से काटता हूँ जिस्म को धीरे-धीरे! जहाँ से रिश्ता लहू कविता की सकल में चिल्लाता है दर्द बनकर और में असहाय निरुपाय...
-
All HD Format YouTube Free Video Downloader ...