मैले कागज़ पर
शब्दों की छितरायी लाशें
पड़ी हैं अस्त-व्यस्त ,
जिनके अंगों को
जोड़ता हूँ मैं
और करता हूँ कोशिश
उन्हें पहचानने की,
ढूंढता हूँ
उनके अर्थ
जो लथपथ हैं
थक्का बने
खून के सरोवर में
जहाँ से आती
सड़ांध
बताती है
की ये शब्द
सड़ चुके हैं
और खो चुके हैं
अपनी पहचान
यहीं - कहीं !!!
शब्दों की छितरायी लाशें
पड़ी हैं अस्त-व्यस्त ,
जिनके अंगों को
जोड़ता हूँ मैं
और करता हूँ कोशिश
उन्हें पहचानने की,
ढूंढता हूँ
उनके अर्थ
जो लथपथ हैं
थक्का बने
खून के सरोवर में
जहाँ से आती
सड़ांध
बताती है
की ये शब्द
सड़ चुके हैं
और खो चुके हैं
अपनी पहचान
यहीं - कहीं !!!