धुंधलाती सांझ की दीवारों पर टिकी
आसमानी छत के नीचे
जब सूरज डूबने लगता है,
अपने घर के कोने में
तो लगता है की
ताम्बे की परात में
बादलों सा श्वेत आटा गूंथे तुम
सूरज की अलाव पर
सेंक रही हो रोटियां
मेरे लिए!!
और मैं घर की राहदरी में टहलता हूँ
तुम्हारे बुलावे तक
और जब तुम आवाज दे
बुलाती हो मुझे चोके पर
खाने के लिए
तो चाँद चुपके से उतर आता है
मेरी थाली में रोटी की तरह!!
...................... नववर्ष २०६७ की शुभकामनायें