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शनिवार, 20 मार्च 2010

"मेरे लिए"


धुंधलाती सांझ की दीवारों पर टिकी
आसमानी छत के नीचे
जब सूरज डूबने लगता है,
अपने घर के कोने में
तो लगता है की
ताम्बे की परात में
बादलों सा श्वेत आटा गूंथे तुम
सूरज की अलाव पर
सेंक रही हो रोटियां
मेरे लिए!!
और मैं घर की राहदरी में टहलता हूँ
तुम्हारे बुलावे तक
और जब तुम आवाज दे
बुलाती हो मुझे चोके पर
खाने के लिए
तो चाँद चुपके से उतर आता है
मेरी थाली में रोटी की तरह!!
...................... नववर्ष २०६७ की शुभकामनायें

गांधीजी तुम्हारे तीन बन्दर.............!


गांधीजी तुम्हारे तीन बन्दर
पहला-------> बीमार है!
दूसरा--------> लाचार है!
तीसरा--------> बेरोजगार है!
ओ बापू! तुम्ही बताओ
क्या तुम्हारे स्वप्निल रामराज्य का भारी बोझ
इन दुर्बल कहारों के कन्धों पर टिक पायेगा!