सुबह जो पत्नी जी, हमको उठाने आई,
मैंने कहा प्राण प्यारी , हमें ना उठाइए!
थेला साथ लिए हाथ, मुझको हिला के बोली,
जाके जरा सब्जी, खरीद कोई लाइए,
मैंने कहा पति हूँ मैं, कोई चपड़ासी नहीं,
मुझको घरेलु काम मैं ना उलझाइये,
पटक के पांव मेरी प्राण प्यारी बोली मोहे,
परमेश्वर मेरे ऐसी बातें ना बनाइये,
मैं तो दासी चरणों की आप के हे ईश मेरे
हो जो परमेश्वर तो स्वर्ग को जाइये,
वरना उठाओ थेला सब्जी खरीद लावो
मेरी सोयी काली आत्मा को ना जगाइए!
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कुछ इस तरह उसने मेरी
आँखों से गम को छुपा लिया,
मुस्कुराये, और उसी को
नकाब अपना बना लिया!!!
पृथ्वीपाल रावत "अकेला मुसाफिर"
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