दादुर बोल रहे टर - टर।
मतवारे झोंके के डर से,
कांपे पीपरिया थर - थर।।
रिमझिम पड़ी फुहारों से,
भीगे गौरैया के पर।
सोच रही है बच्चों को,
ले जाए, अब कहां? किधर?
इंद्रधनुष के रंगों से,
होली खेल रहे बादल।
बरस रहा देखो झर झर,
आसमान से ये बादल।
खरगोशी सांझे डूबी,
उड़े कबूतर सा यह दिन।
टप टप करती बूंदों से,
भीग रहे हैं सब पल छिन।
लहर लहर नदिया लहराती,
तोड़ तटों के सब बंधन।
मछली सा तैरे नदिया में,
जन मन के बचपन सा मन।
नौकाओं का साहस देखो,
डोल रही है जो मंझधार।
नाविक का दुस्साहस देखो,
कैसे होगी नदिया पार?
सजनी बोली सुन री सखिया!
आये री मनभावन दिन।
अमराई पर बोली कोयल,
आए री सावन के दिन!