ठन्डे लोहे के गर्भ से,
दहकता गर्म लावा
बाहर निकलकर बिंध जाता
है ह्रदय को
और धारा रक्त की है फ़ैल जाती
राजपथ पर
सुनसान अँधेरी रात को,
एक मानव फडफडाता
है जमी पर
और दूजा हँस के
चल देता है अपनी राह को
दूर मानवता खडी थी
बदहवास
और जालिम चीटियां अब
चढ़ गयी हैं लाश पर........
दहकता गर्म लावा
बाहर निकलकर बिंध जाता
है ह्रदय को
और धारा रक्त की है फ़ैल जाती
राजपथ पर
सुनसान अँधेरी रात को,
एक मानव फडफडाता
है जमी पर
और दूजा हँस के
चल देता है अपनी राह को
दूर मानवता खडी थी
बदहवास
और जालिम चीटियां अब
चढ़ गयी हैं लाश पर........