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शनिवार, 15 अगस्त 2015

गर्म लावा

ठन्डे लोहे के गर्भ से,
दहकता गर्म लावा 
बाहर निकलकर बिंध जाता 
है ह्रदय को 
और धारा रक्त की है फ़ैल जाती
राजपथ पर
सुनसान अँधेरी रात को,
एक मानव फडफडाता
है जमी पर
और दूजा हँस के
चल देता है अपनी राह को
दूर मानवता खडी थी
बदहवास
और जालिम चीटियां अब
चढ़ गयी हैं लाश पर........