खोल पसरे उर्ध्व होकर,
 बांचो, कौन बांचेगा?
 वेदना की पोत कालिख,
 कह रही है लेखनी भी,
 बांचो, कौन बांचेगा?
 कल्पना के नाग जगे,
 सोये थे जो निद्रा मैं कब से,
 बांधो, कौन बांधेगा?
 छंद के सब बांध टूटे,
 ताल सुर बेताल सारे,
 नाचो, कौन नाचेगा?
 मौन चुप्पी तोड़ चीखा
 इस क्रांति की ज्वाला मैं जलकर,
 मानो, कौन मानेगा?
 दाता बता कैसी बला है,
 हर शख्स क्यों बदला हुआ है,
 जानो, कौन जानेगा?
 
 
1 टिप्पणी:
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
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