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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

जाने-अनजाने ......!

मेरे दामन के सब बासी फूल
आज गंगा में
प्रवाहित हो चुके है
तेरी यादों की नमी लेकर
तेरे जिस्म की खुशबू
जो लिपटी थी
चंद गुलाबो की पंखुरियों पर
उन्हें बिखेर आया हूँ मै
उस रेतीली जमीन पर
जहां से उठते कई सवाल
झांक रहे थे
तुम्हारी सकल में
और मैं
मुह बाये
देखता रहा था
उन्हें अनदेखा कर
और खुद को छोड़ आया हूँ
उन सवालों के कटघरे मैं
उसी गंगा तट पर
जहाँ से तुम्हारी यादों का सफ़र
मुझे खीच लाया था
तुम्हारी तरफ
ज्वार बनकर
जाने-अनजाने !

2 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

yaadon kee potli ganga kee lahron sang laut aai hai, shabd ban gai hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं