माँ तुम्हें भुला नहीं हूँ |
सहर की तंग गलियों में , निशा की मौन गलियों में ,
भीड़ में भी रह अकेला, माँ तुम्हें भुला नहीं हूँ|
माँ तुम्हें भुला नहीं हूँ |
देखता हूँ अब भी रह-रह, नैन भीगे ओंठ सूखे,
काटती थी ओंठ फिर भी, अश्रु रोके से न रोके ,
वह विदाई की घड़ी माँ, आज भी भुला नहीं हूँ|
माँ तुम्हें भुला नहीं हूँ |
टिमटिमाते तार से वे, नयन थे वात्सल्य झरते,
बैठने को फिर से गोदी, मन में दबे अरमां मचलते,
ममता सनी वह बांह फैली, माँ उन्हें भुला नहीं हूँ|
माँ तुम्हें भुला नहीं हूँ |
नयन लाते अश्रु भर-भर, ज्यों फूटता हो कोई निर्झर,
शब्द सरे मूक थे जो, लौट जाते थे उभर कर,
माँ तुम्हारी भाव-विह्वल, मूर्ति मैं भुला नहीं हूँ,
माँ तुम्हें भुला नहीं हूँ |
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